
हिमाचल प्रदेश के कालीधार पर्वतों पर स्तिथ यह अद्भुत धार्मिक तीर्थ स्थल, This amazing religious shrine is located on the Kalidhar Mountains of Himachal Pradesh
यह धार्मिक मंदिर हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा जिले में ज्वाला जी मंदिर के पास स्तिथ एक पहाड़ी के ऊपर स्तिथ है। जो टेढ़ा मंदिर नाम से जाना जाता है। यह मंदिर हिन्दुओ का धार्मिक स्थान है। यह मंदिर कालीधार पर्वतों पर स्थित रघुनाथेश्वर जी का टेढ़ा मंदिर आज लाखों भक्तों की आस्था का प्रतीक बन गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री राम माता सीता सहित यहां पर स्तिथ गुफा में कुछ समय के लिए निवास किया था।
महाभारत और रामयण काल से सबंदित, Related to Mahabharata and Ramayana period
यह मंदिर महाभारत के समय का एक ऐतिहासिक मंदिर है। इस मंदिर में पांडवों ने हिमाचल वनवास के दौरान यहां कुछ समय व्यतीत किया था। हर साल भरी मात्रा में श्रदालु यहां दर्शन के लिए आते है। यदि आप काँगड़ा गुमने के लिए आते है। तो इस अद्भुत स्थान में जाना ना भूले यहां का वातावरण बहुत ही शांत और सुखदायक है। यहां आ के आप को बेहद शांति मिलेगी।
इस मंदिर में अमूल्य श्री राम चंद्र, माता सीता, लक्ष्मण, हनुमान व अन्य अष्टधातु से बनीप्राचीन मूर्तियां थीं। जो बार- बार चोरी हो जाने के बाद जिला कोषागार धर्मशाला में हिफाजत से रखी गई हैं। यह मंदिर पहले कुछ समय तक साधु समाज के अधीन था। इस मंदिर का संचालन बाबाओ द्वारा ही होता था। परंतु कुछ समय पहले ही मंदिर न्यास ज्वालामुखी के अधीन इस मंदिर को लाकर इसका सरकारीकरण कर दिया गया है।
भूकंप भी इस मंदिर को नुकसान नहीं पहुंचा पाया, Earthquake also did not harm this temple
यह मंदिर ज्वालामुखी के सौजन्य से इस मंदिर के रखरखाव पर पैसा खर्च किया जा रहा है। यहां के कर्मचारियों को मंदिर न्यास ज्वालामुखी के अधीन लाया गया है। इस मंदिर में के विकास के लिए यहां रज्जू मार्ग बस अड्डे के पास निर्माणाधीन मल्टी स्टोरी कार पार्किंग के टोप फ्लोर से बनेगी जो अर्जुन नागा तारा देवी मंदिर व टेढ़ा मंदिर को जोड़ेगी। यह स्थान एक बहुत ही लोकप्रिय पर्टयक स्थान है। इस मंदिर के लिए ज्वालामुखी के ज्वाला देवी मंदिर की बगल से ही इसके लिए रास्ता जाता है।
ज्वाला जी मंदिर के नजदीक है यह धार्मिक स्थान,This religious place is near Jwala ji temple
इस मंदिर की दुरी ज्वाला जी मंदिर से करीब 2 किलोमीटर है। यहां का पूरा रास्ता ऊबड़-खाबड़ पत्थरों से युक्त चढ़ाई भरा है। यह मंदिर 116 वर्ष पहले 1905 में आया भूकंप भी क्षतिग्रस्त नहीं कर पाया था। यह मंदिर भूकंप के तेज झटकों से टेढ़ा जरूर हो गया था। इस मंदिर को किसी भी प्रकार का कोई नुकसान नहीं कर पाया था। तब से श्रद्धालु यहां टेढ़े खड़े होकर ही दर्शन करते हैं।