मछिन्दर महादेव हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा जिले में स्तिथ एक धार्मिक और रहस्मयी मंदिर, Machindar Mahadev A religious and mysterious temple in Kangra district of Himachal Pradesh

यह धार्मिक स्थान हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा जिले में नगरोटा बगवा नामक स्थान में स्तिथ एक बहुत ही रहस्मयी और पूजनीय मंदिर है। इस मंदिर की स्थापना गाँव मुमंता में है। इस लोकप्रिय मंदिर को मछयाल नाम से भी कहा जाता है। इस स्थान में एक नदी बहती है। जो जोगल खड्ड नाम से जानी जाती है। इसी खड्ड में बनी एक झील में काफी मात्रा में मछलिया पायी जाती है।
मछलियो को आटा खिलाने से मिलती है दुखो से मुक्ति, Feeding flour to fishermen gives relief from suffering
पौराणिक मान्यताो के अनुसार यहां स्तिथ मछलियो को आटा खिलाने से सभी दुखो से मुक्ति मिलती है। श्रदालु यहां देश विदेश से मछलियो को आटा खिलाने के लिए आते है। कहा जाता है की इस स्थान में मत्सय अवतार में भगवान विष्णु जी साक्षात विराजित है। स्थानीय लोगो का मानना है की यहाँ पर आटा डालने से श्रदालुो की सभी मनोकामनए पूर्ण होती है।
संतोषी माता शनिदेव मंदिर भी है विराजमान, Santoshi Mata Shanidev Temple is also enshrined
मछिन्दर महादे मंदिर के साथ ही और भी बहुत से धार्मिक मंदिर स्तिथ है जैसे संतोषी माता शनिदेव मंदिर इत्यादि। यह मंदिर नगरोटा बगवां से दो किलोमीटर की दूरी पर स्तिथ है। यहां के निवासियों की यह मान्यता है कि जिन लोगों की मनते पूर्ण हो जाती हैं। वे इस छोटी झील में स्तिथ मछली को बालू सोने की तार डालते हैं।
मछिंद्र महादेव के दर्शन के लिए लोग ढोल-नगाड़ों के साथ आते हैं। इस मंछिद्र महादेव मंदिर के चारों ओर प्राकृतिक सौंदर्य स्तिथ है। जिस का नजारा बहुत ही लुहावना है। इस मंदिर के साथ ही लगभग 12 फुट ऊंची भगवान शिव की मूर्ति का भी निर्माण किया गया है। जिसका दृश्य बहुत ही आकर्षित है।
स्थाई निवासियों द्वारा प्रचलित रहस्मयी कथा, The mysterious story used by the permanent residents
यहाँ के इस धार्मिक स्थान की और रहस्मयी कथा है माना जाता है, मुमता गांव में जब शादी या कोई अन्य समारोह होता था। तो जिन लोगो के पास भोजन बनाने के लिए वर्त्तन नहीं होते थे। इस समयसा से बचने के लिए वो मछिन्दर देवता को नियुंदर (निमंत्रण) देते थे जिस से अगले दिन पानी में में वर्त्तन पानी के ऊपर तरते थे।
कहा जाता है के निवासी को जिन जिन वर्त्तन की जरूरत होती थी वो सामान की लिस्ट मंदिर में रेख आते थे। और अगली सुबह उन को वो सभी वर्त्तन मिल जाते थे। समारोह के बाद अगले दिन रत को निवासी उसी स्थान में वर्त्तन रेख आते थे एक दिन किसी लालची व्यक्ति ने समारोह के बाद वर्तन नही लोटाये जिस कारण देवता रुष्ट हो गये और वर्तन देने मिलनी की प्रथा गतम हो गयी।