बीजापुर में स्तिथ सीताराम मंदिर यहां बस्ते है साक्षात राम भगवान, Sitaram temple in Bijapur is situated here Sakshat Ram Bhagwan

इस मंदिर के इतिहास की जानकारी हिमाचल प्रदेश के जिला काँगड़ा के बैजनाथ में स्तिथ दो शिलालेखों से जो 12वीं और 13वीं शताब्दी के है पता चलता है। इस जयसिंहपुर नगर की स्थापना कांगड़ा के राजा जयचंद ने की थी। इस स्थान से व्यास नदी का एक बहुत ही सुंदर नजारा देखा देखने को मिलता है। जयसिंहपुर के सुआ गांव से 3 किमी। दूर बाबा भौड़ी सिद्ध मंदिर और आशापुरी मंदिर स्तिथ है। जो यहां स्तिथ धार्मिक स्थानों में से एक एक है। यहां हर साल बहुत से श्रदालु अपनी मनोकामनाएं मांगने आते हैं। इस लोकप्रिय स्थान जयसिंहपुर के बीजापुर गांव में सीताराम जी मंदिर के इतिहास का पता चलता है। माना जाता है कि बीजापुर गांव राजा विजय चंद द्वारा लगभग 1660 ई। में बसाया गया था।
ऐतिहासिक मान्यताओं के अनुसार, According to historical beliefs
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार सीताराम जी मंदिर का निर्माण राजा विजय चंद द्वारा सन् 1690 में करवाया गया। इस लोकप्रिय मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हो चुका था परन्तु यह ज्ञात नहीं था की मंदिर के अंदर मूर्ति की स्थापना कहा से की जाए। मूर्ति को कहा से लाया जाए।
तब राजा विजय चंद को स्वप्न हुआ कि हारसी पत्तन के गांव काथला वेई के नजदीक व्यास नदी की गहराई में सीता राम और लक्ष्मण की मूर्तियां एक काले रंग की शिला पर अंकित हैं।
जिन्हें तराशकर मंदिर में स्थापित किया जा सकता है। जब मूर्तियां तैयार हो गईं तो राजा ने उन्हें लाने के लिए अपने आदमी भेजे पर वे लोग मूर्तियों को उठा नहीं सके। राजा को पुनः स्वप्न हुआ कि मूर्तियां लाने राजा खुद जाएं, दूसरे दिन राजा अपने दरबारियों के साथ स्वयं वहां गए और मूर्तियों को वहां से बाजे के साथ लाकर मंदिर में स्थापना करवाई।
एक चमत्कारी मंदिर जहां है राम भगत हनुमान जी की मूर्ति, A miraculous temple where there is a statue of Ram Bhagat Hanuman
इस मंदिर के साथ ही प्रांगण में भगवान हनुमान जी की एक अद्भुत मूर्ति स्थापित है। ऐतिहासिक मान्यताओं के अनुसार जब भारत वर्ष के प्राचीन मंदिरों पर मुगलों के आक्रमण हो रहे थे। हिन्दुओ के धार्मिक मंदिरो को नष्ट किया जा रहा था। उस समय सीताराम मंदिर में भी मुगलों द्वारा आक्रमण किया गया। जिसमें मुगल सैनिकों ने हनुमान जी की मूर्ति के हाथ काट दिए। जैसे ही प्रभु प्रतिमा के हाथ काटे गए।तो हनुमान जी की मूर्ति के नाक और कान से रंगड़ जिन्हे मदुमखी भी कहा जाता है निकलने लगे और मुगल आक्रमणकारियों को काटने लगे। जिसे से उन सभी आक्रमणकारी नष्ट हो गए।
आज भी इस स्थान में मधुमखिया यहां पाई जाती है। इस मंदिर में चार समय भोग और आरती की जाती है। सीता राम मंदिर में चैत्र नवरात्र पर्व बहुत ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है। हर साल देश विदेश से यहां श्रदालु गुमने और दर्शन के लिए यहां आते है। जिसमें श्री राम जन्मोत्सव के साथ-साथ दशमी के दिन विशाल भंडारे का आयोजन भी किया जाता है। यदि आप भी कभी काँगड़ा की सैर के लिए आ रहे है तो इस स्थान में ना भूले।